Monday, June 1, 2009

बारीश






बारीश
आसमानके सिनेको हल्का कर गई,
मेरे दिलके बोज़को दुगना कर गई।
पत्तोकी आंखोको गीला गीला कर गई,
फुलोके सिनेके छेद्को गहेरा कर गई।
मेरे दिलके ज़ख्मोको ताज़ा कर गई।
यह बारिश सबकुछ तबाह कर गई।
सपना

2 comments:

  1. सपना जी,

    बारिश को लेकर यह नाराजी ठीक नही? जिन्दगी में उमंगों के रंग भरने वाली स्फूर्त बारिश में कभी भीगिये और महसूस कीजिये पानी को उतरता हुआ अपने अंदर, हो सकता है आप मेरी बात में यकीं करलें।

    मुकेश कुमार तिवारी

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  2. acha likha hai ...

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